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मेरा वो पहला मजा Mera Wo Chudai ka Pehla Maja

मेरा वो पहला मजा Mera Wo Chudai ka Pehla Maja

मित्रों मेरा नाम विरेन है और अब मैं आपको शुरू से व विस्तार से बताता हूं कि आखिर कैसे मैं अपनी ही सगी चाची से प्यार कर बैठा और वो सबकुछ कर बैठा, जो मेरे चाचा, चाची साथ करते रहे होंगे।
घर में उस रोज सब बेहद खुश थे। हम सब भाई-बहन व मेरे माता-पिता मिलकर गांव जाने की तैयारियां कर रहे थे। दरअसल मेरे चाचा की शादी थी गांव में। मैं अपने भाई-बहनों में सबसे बड़ा था और मेरी उम्र 16 साल की थी।
हम सब लोग शादी के तीन हफ्ते पहले ही गांव चले गये थे। केवल चाचा ने अपनी शादी के एक हफ्ते पहले आना था, उनको आॅफिस से छुट्टी नहीं मिल पाई थी।
गांव में पहुंच कर बहुत अच्छा लगा। वो गांव की हरियाली, शुद्ध हवा व मीठा शीतल पानी।
दरअसल मैं पहाड़ी क्षेत्र का रहने वाला हूं, इसलिए मेरा गांव पहाड़ से संबंधित है और आप तो जानते ही होंगे मित्रों गांव की आबो हवा व वहां वातावरण कैसा होता है…?
गांव में सुबह उठकर जब मैं नहाने के लिए झरने में जाता था, तब वहां पर कई गांव की औरतें व खूबसूरत लड़कियां वस्त्र धोने व गगरी में पानी भरने आती थीं।
सच कहूं, मित्रों उस समय मेरा नहाने में कम और उन जवान सुंदर लड़कियों को देखने में ज्यादा ध्यान होता था। गांव की अल्हड़ लड़कियां जब पानी भरकर गगरी उठाने के लिए झुकती थीं, तो नुमाया हो रहे यौवन रूपी कलशों का नज़ारा देखकर मेरा मन बेचैन हो उठता था। मन करता कि बस एक बार उस लड़की का प्यार अकले में पा लूं, तो बस मजा ही आ जाये।
लेकिन क्या कहूं यारों, अपने मन के ‘अरमान’ को अपने ही ‘हाथों’ कुचलना पड़ता था। मैं रोज नहाने झरने पर जाता और रोज लड़कियों को देखकर केवल आंहें भरता और आ जाता।
सोचता, कभी तो वो वक्त आयेगा, जब मेरी भी कोई गर्लफ्रैंड होगी या कोई ऐसी स्त्री या लड़की होगी, जो मुझसे प्रेम करेगी और मैं उसके साथ वो सब करूंगा, जो झरने के पास आने वाली लड़कियों के बारे में मैं मन-ही-मन कल्पना करता था।
खैर ठंडी आंहें भरते हुए ही दिन गुजरने लगे और चाचा की शादी के दिन नजदीक आने लगे। चाचा की शादी को अब एक हफ्ते रह गये और चाचा भी अब तक गांव पहुंच गये थे।
चाचा और मेरे बीच सात साल का अंतर था। हम दोनों में दोस्तों जैसा व्यवहार था, जिस कारण हम लगभग अपनी हर पर्सनल बातें आपस में शेयर कर लेते थे। मैं भी चाचा को उनकी शादी को लेकर व आने वाली नई दुल्हन को लेकर चाचा से हंसी-ठिठोली करता रहता था।
चाचा भी मुझसे खुलकर बातें करते थे और मुझसे मेरी गर्लफ्रैंडों व गांव की लड़कियों के बारे में कुछ न कुछ पूछते ही रहते थे।
एक रोज इसी प्रकार मैंने भी चाचा से हंसी-मजाक के बीच कह दिया, “अब तो चाचा…।“
“अब तो क्या बे?“ चाचा मेरी ओर देखकर बोले।
“चाची के सपने देख रहे होंगे आप।“ मैं छेड़ते हुए बोला, “क्यों, सच कह रहा हू न मैं?“

“अबे ज्याद न बोल समझा। चाचा हूूं तेरा, कोई लंगोटिया यार नहीं हूं।“
“अरे चाचा बता भी दो, क्यों भाव खा रहे हो।“
“हां ले रहा हूं सपने, तुझे कोई एतराज है?“
“मुझे क्या एतराज होगा चाचा।“ मैं चाचा को कोहनी मारते हुए बोला, “चाची के सपने लो या चाची की…।“
“चाची की क्या बे।“ चाचा मुस्कराते हुए मेरे कान पकड़ कर बोले, “ज्यादा ही ओपन हो रहा चाचा से अपने।“
“अरे मेरे ओपन होने से क्या होता है, ओपन तो जब चाची होगी आपके सामने मजा तो तब आयेगा।“
“मुझे मजा आये न आये, तू पहले मजे ले ले।“ चाचा मुस्कराते हुए बोले, “वैसे तू क्यों इतना बावला हो रहा है चाची को लेकर?“
“भला मैं क्यों चाची को लेकर बावला होने लगा। मैं तो गांव की गोरियों को देखकर बेसुध हो जाता हूं। जी करता है कि बस…“
“क्या जी करता है बेटे?“ चाचा भी मुस्करा के बोलते, “बेटे अपने ‘जी’ को संभाल और फिलहाल अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे और इस समय मेरी शादी पर ध्यान दे, लड़कियों पर नहीं। वैसे भी बहुत काम हैं शादी में।“
“ये तो सही कहा चाचा आपने। काम तो वाकई बहुत हैं।“
फिर हमारी हंसी-ठिठोली यहीं समाप्त हो गई और हम सब शादी की तैयारियों में व्यस्त हो गये।
निश्चित समय पर चाचा की शादी हो गई और हम लोग दुल्हन को यानी रिश्ते में मेरी चाची को लेकर घर आ गये।
क्या बताऊं मित्रों चाची क्या थी, अप्सरा थी अप्सरा। मेरे दिल की सुनों, तो मेरे लिए वो अप्सरा से भी कहीं बढ़कर स्वप्न सुंदरी थी। मैं मन ही मन चाचा की किस्मत पर नाज करने लगा और थोड़ी-थोड़ी जलन भी होने लगी।
मन में आने लगा कि, काश! ये लड़की मेरी झोली में डाल देता भगवान, तो मेरी लाॅटरी ही निकल जाती। मगर ऐसा नहीं हो सकता था, वो तो मेरी चाची बनकर मेरे सामने आई थी।
चाचा की शादी हो चुकी थी और चाची भी घर आ गई थी। मेहमान धीरे-धीरे जा चुके थे। मेरे चाचा और चाची की सुहागरात भी हो गई।
अगली सुबह जब चाचा अपने कमरे से निकले तो मैं मन ही मन उन्हें देखकर सोचने लगा, कि हाय क्या-क्या हुआ होगा रात को सुहागकक्ष में….
मौका पाकर मैंने चाचा से छेड़ की, “हाल कैसा है जनाब का?“
“मेरे हाल तो ठीक है, मगर तेरी आंखें देखकर लगता है तेरे हाल ठीक नहीं हैं।“
“हां चाचा वो रात को जरा देर से सोया था न, इसलिए नींद पूरी नहीं हुई।“
“अबे देर से तो मैं भी सोया था, मेरी आंखें तो ऐसी नहीं हो रहीं।“
“तुमन तो साक्षात् जलवा देखा होगा, मैं तो कवेल ख्यालों में ही जलवा देखकर खोया रहा और जागता रहा। सुहागरात आपकी थी, जाग मैं रहा था।“
सुनकर चाचा हंस पड़े और मैं भी हंसे बिना नहीं रह पाया….

खैर इसी प्रकार दिन बीतने लगे और हम सब लोग शहर अपने घर आ गये। चाचा हमारे साथ ही रहते थे, सो चाची भी यहीं हमारे घर पर रहने लगी थी।
चाचा की शादी को तीन माह बीत गये थे। इस बीच चाची और मैं काफी घुल-मिल गये थे। चाची और मैं हमउम्र थे। मेरी चाची का नाम कोमल था।
मेरी चाची की एक बात थी, वो जब भी मुझसे बात करती तो एकदम नजरों से नजरें मिलाकर करती थी। उनकी कजरारी आंखें जब मेरी आंखों से मिलती, मेरा दिल जोरों से धड़कने लगता।
चाची और मेरे बीच काफी हंसी-मजाक होता था। मैं चाची को बहुत हंसाया करता था। चाची इतना हंसती, कि पेट पकड़ कर लोट-पोट हो जाती। फिर कहती, “बस कर, हंसा-हंसा के क्या मार डालेगा।“
अब मित्रों मैं आपको उस रोज की बात बताता हूं, जिसको जानने के लिए आप भी उत्सुक होंगे।
उस रोज चाची और मैं घर में अकेले ही थे। मेरे माता-पिता व चाचा जी गांव में दो-तीन दिन के लिए किसी रिश्तेदार की शादी में शामिल होने गये थे। हम भाई-बहन व चाची घर में रह गई थी।
चाची इसलिए नहीं गई, कि कोई खाना बनाने के लिए व हमारी देखभाल के लिए भी घर में चाहिए था।
उस रोज मैं स्कूल नहीं गया था। मैंने सिर दर्द का बहाना बना लिया था, दरअसल मैं चाची के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताना चाहता था। शायद मैं चाची को मन ही मन चाहने लगा था।
मेरे भाई-बहन स्कूल चले गये थे। दोपहर के लगभग 12 बजे का समय रहा होगा, जब चाची मेरे पास आई और बोली, “विरेन तेरे सिर में ज्यादा दर्द हो रहा है, तो डिस्प्रिन दे दूं। वरना मैं फिर नहाने जा रही हूं। उसके बाद ही कोई काम करूंगी।“
चाची के गुलाबी होंठों से ‘नहाना’ शब्द सुनकर मेरे मन के तार झनझना उठे। मैंने चाची से कहा, “चाची जो कमाल आपके हाथों में है, वो डिस्प्रिन में कहा।“
“मतलब।“ चाची ने पूछा।
“मतलब अगर नहाने से पहले थोड़ी देर मेरा सिर दबा दें, तो सिर दर्द में कुछ आराम आ जाये।“
“तभी तो पूछ लिया मैंने तुझे।” चाची मेरे पास आई और मेरे गालों पर हाथ फेरते हुए बोली, ”तू मुझसे शरमा रहा था क्या?”
चाची ने मुझे छुआ, तो एकाएक मेरा चंचल ‘जानवर’ अंदर ही अंदर चहल-कदमी करने लगा। मैंने उस वक्त अपने आपको संभाला और पूछा, ”आप क्या पूछना चाह रही हैं चाची? किस बात से शरमाऊंगा मैं?“
”जब मैंने तुझे पूछा, तब तूने कहा कि मेरा सिर दुख रहा है दबा दो।” चाची मुस्कराई और बोली, ”पहले नहीं बोल सकता था। मैं क्या मना कर देती।”

”काश! उस चीज के लिए भी ‘हां’ कह दो कभी।” मैं दबी आवाज में धीरे से बोला।
”क्या?” चाची ने जैसे मेरी बात सुन ली थी, ”क्या चीज कह रहा है तू?”
“क..क..कुछ नहीं चाची।” मैं सकपकाता हुआ बोला, ”आप नहालो, मुझे केवल सिर दर्द का बाम थमा दो। मैं खुद ही सिर पर मल लूंगा।”
“ठीक है फिर खुद ही लगा ले।” चाची भी जानबूझ कर दिललगी करती हुई मुस्कराई और बोली, ”मैं तो चली नहाने।“
पता नहीं कहां से मुझमें हिम्मत आई और मैंने एकाएक चाची का हाथ पकड़ लिया और बोला, ”मत जाओ न छोड़कर।”
चाची मेरी ऊपर आते-आते गिरती हुई बची। मगर फिर भी वह काफी हद तक मेरे बदन से छू चुकी थी। उनके अंग-प्रत्यंग जाने-अन्जाने मेरे बदन से छू गये थे, जिससे मुझे बड़ा रोचक आनंद आया था।
चाची ने भी शायद मेरी दशा भांप ली थी। मगर फिर भी बात को नजरअंदाज करती हुई बोली, ”अभी तो खुद ही नखरे कर रहा था कि खुद लगा लूंगा बाम। अब क्या हुआ? और मैं वाॅशरूम जा रही हूं नहाने, कोई घर छोड़कर नहीं जा रही हूं।” इस बार चाची ने मेरी आंखों में झांकते हुए बोला, ”वैसे तेरे चाचा की पकड़ और तेरी पकड़ एक जैसी है। वो भी इसी तरह रात को जोर लगा कर…”
फिर चाची एकाएक चुप हो गई। शायद समझ गई थी कि वह अपने भतीजे से क्या कह रही है…?
”आगे कहो न चाची।” मैं भी उत्साहित होकर बोला, ”जोर लगाकर क्या?”
”चुप हो जा।” चाची दूसरी ओर मुंह करके अपनी हंसी छिपती हुई बोली, ”अभी तो तेरे सिर में दर्द हो रहा था। अब क्या हुआ, मेरी बातों में तुझे बड़ा मजा आ रहा है।“
”बातों में तो कम से कम मजा लेने दो चाची।” मेरे मुंह से भी निकल गया, ”मेरा मतलब मैं अभी कुंवारा हूं न, इसलिए शादी के बाद क्या होता है, उस बात से अन्जान हूं। अभी आपसे बात करके जान लूंगा, तो भविष्य में परेशानी नहीं आयेगी।”
”ज्यादा बातें न बना।” चाची नाटकीय नाराजगी दिखाती हुई बोली, ”जब शादी का वक्त आयेगा, तब अपने आप सब समझ आ जायेगा। अभी पढ़ाई पर ध्यान दो…”
”अच्छा चाची एक बात बताओ।” मैं अब थोड़ा-थोड़ा खुलने लगा था, “अभी जब आप मेरे ऊपर गिरीं जब मैंने आपका हाथ पकड़ कर रोका, तो मुझे बहुत ही अजीब सा लगा। आपके शरीर के हिस्से मुझे स्पर्श हुए तो ऐसा लगा मानो जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी और मजा इसी में है। ये क्या था…? ऐसा क्यों हुआ? क्या आपको भी हुआ…अभी ऐसा, जैसा मुझे हुआ?”

”चुपकर पगले।” चाची मेरे होंठों पर अंगुलि रखती हुई बोली, ”चाची से ऐसी बातें नहीं पूछा करते। वैसे बढ़ती उम्र के साथ ऐसा होता है।” फिर चाची उठी और बाथरूम की ओर जाती हुई बोली, ”अच्छा अब चली मैं नहाने। तू सोचता रह, जो तूने सोचना है।”
फिर चाची बाथरूम में घुस गई और नहाने लगी। साथ ही वह बेहद भड़कीला गीत भी गुनगुना रही थी…”कभी मेरे साथ कोई रात गुजार।“
मैं चाची की आवाज को सुनकर बिस्तर पर ही लेटा-लेटा उत्तेजित हो रहा था। साथ ही सोचता जा रहा था, चाची इस समय बाथरूम में बिल्कुल निर्वस्त्र होगी। कैसे-कैसे अपने गोरे खिले हुए कबूतरों पर साबुन मल-मल कर रगड़ रही होगी। पानी भी कभी उनकी संकरी ‘प्रेमगली’ से गुजरता होगा, तो कभी पीछे की गलियारी से अपना रास्ता खोजता हुआ बाथरूम की नाली में मिल जाता होगा।”
अभी मैं ये सब सोच ही रहा था, कि एकाएक चाची ने बाथरूम के अंदर से ही कहा, ”अरे विरेन।”

मैं तुरन्त दौड़ता हुआ बाथरूम के दरवाजे के बाहर पहुंच कर बोला, ”हां चाची।”
”वैसे मुझे भी कुछ-कुछ हुआ था, ऐसा कुछ हुआ था, जो तेरे चाचा के छूने पर भी नहीं होता मुझे।“
और बाथरूम में चाची के हंसने की खिलखिलाहट मुझे सुनाई देने लगी।
ये सुनकर तो मेरे पूरे तन के तार झनझना उठे। अब तो मेरे सब्र का बांध टूट गया था। मैंने जोर से दरवाजा पीटा..
”अरे क्या हुआ?“ चाची अब भी हंस रही थी, ”अभी तक यहीं खड़े हो?“
”चाची न जाने कबसे खड़ा है, तुम्हें क्या पता।” मैं जानबूझ कर दो अर्थों वाली भाषा में बोला, ”मेरा मतलब तुम्हारा दीवाना कबसे इस आस मंे बाथरूम के बाहर खड़ा है, कि दरवाजा खुले और तुम मुझे खींच कर बाथरूम के अंदर ले ले और…”
अंदर से कुछ आवाज नहीं आई…कुल पलों की खामोशी पसर गई। मैं समझा चाची बुरा मान गई। मुझे पछतावा होने लगा कि मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए था। मैं घबराने लगा, कि कहीं चाची ने चाचा को…
“चाची मैं बेवकूफ हूं मुझे माफ कर देना।” मैं घबराते हुए बोला, ”मुझमें जरा भी अक्ल नहीं है। मुझे समझना चाहिए था कि चाची से ऐसी बातें नहीं करते और न ही ऐसी नजरें रखनी चाहिए।”
मैं अभी आगे और कुछ कहता तभी चाची के अंदर से पुनः हंसी की आवाज आई और चाची बोली, ”तुम वाकई बेवकूफ हो और लल्लू भी।”
”मैं समझा नहीं चाची।” मैं इस बार थोड़ा सब्र करते हुए बोला, ”मतलब?”
”मैं कब का बाथरूम का दरवाजा अंदर से खोल चुकी हंू बुद्धू।” चाची ने हौले से बाथरूम का दरवाजा अंदर की ओर खोला, ”अब आ रहे हो अंदर या मैं अंदर से कर लूं दरवाजा दोबारा बंद?”
फिर क्या था मित्रों… मैं तुरन्त ही अंदर ऐसे घुस गया, जैसे चूहेदानी में बंद चूहा, पिंजरा खुलते ही फुर्ती दिखाता हुआ चूहेदानी से कूदकर भाग पड़ता है।

फिर तो चाची और मैं फ्वारे के नीचे निर्वस्त्र होकर एक-दूसरे से चिपके हुए साथ नहाने लगे। कभी चाची मेरे तोते पर साबुन मलती, तो कभी मैं चाची के कबूतरों को जोरों स्पर्श करता हुआ नहलाने लगता। दोनों खिलखिला कर हंसते हुए एक-दूसरे को नहलाने लगे।

 

फिर मैं एकाएक चाची से बोला, “चाची यहां मजा नहीं आ रहा। चलो बिस्तर पर चलते हैं। वहां पहले जी भरकर प्यार की ‘खुदाई’ करेंगे, फिर फ्रेश होने के लिए साथ में बाथरूम में नहायेंगे।”
चाची ने कुछ नहीं कहा और अपनी गोरी बांहें फैलाती हुई अपनी निर्वस्त्र पीठ मेरी ओर की और मेरे ऊपर लेट गई। चाची की पीछे की गलियारी जब, मेरे शैतान से स्पर्श हुई, तो मेरा शैतान, शैतानी करने को आतुर होने लगा। मैंने चाची को गोद में उठाया और दोनों निर्वस्त्र ही बाथरूम से बाहर आकर बेड पर आ गये।
”चाची तुम इतनी जल्दी कैसे मान गईं?” मैंने एकाएक पूछा, ”मुझे तो यकीन नहीं हो रहा।”
“मान गई हूं न, तुझे क्या परेशानी है?” चाची ने मस्ती में आकर मेरे ‘पहलवान’ को अपनी हथेली में जकड़ लिया, ”तू तो बस मेरे प्यार के अखाडे़ में उतर और दिखा अपनी पहलवानी।”
”मेरा पहलवान पूरी तरह से तैयार है, तुम्हारे अखाडे़ में उतरने के लिए।“
”मगर तुम मेरे ‘अखाड़े’ का ख्याल रखना…एकदम आहिस्ता-आहिस्ता उतारना अपने पहलवान को अखाड़े में।”
यह सुनकर मैं और जोश में आ गया..फिर जैसे ही मैंने अपने पहलवान को अखाड़े में उतारा, ”चाची…उईई..मां“ कहकर के उछल पड़ी।
”क्या हुआ चाची?” मैं थोड़ा रूक कर बोला, ”तुम तो ऐसे कर रही हो, जैसे कभी चाचा का ‘पहलवान’ न उतरा हो तुम्हारे अखाडे़ में।“
”अरे तेरा पहलवान ही इतना तगड़ा है, कि मेरे अखाड़े का गलियारा भी कम पड़ रहा है, तेरे पहलवान के दाव-पेच झेलने के लिए। अब ऐसे में मैं क्या करूं?” चाची प्यासी आंखों से मेरी ओर देखती हुई बोली, ”मगर तू चिंता न कर, तू अपनी पहलवानी के दांव-पेच दिखाता रह। प्यार की कुश्ती में तो थोड़ी-बहुत तकलीफ तो होती ही है।”
फिर मैं अपनी कुश्ती पर लग गया। थोड़ी देर में चाची ने कहा, ”हां..हां… ऐसे ही, बिल्कुल ठीक लड़ रहा है तुम्हारा पहलवान। और जोश से और तेेज-तेज चलने को कहो अपने पहलवान को। बहुत मजा आ रहा है।“
अब चाची भी स्वयं मेरे पहलवान के दाव-पेच अपने अखाड़े में सहने लगी। चाची ने मेरे पहलवान को नीचे चित्त लेटाया और स्वयं ऊपर आकर अपने दांव-पेच दिखाने लगी। बुरी तरह कमर उचका कर आंदोलित हो रही थी।
फिर तेज-तेज हांफते हुए बोली चाची ”ओ विरेन… मेरे विरेन सुन रहा है न तू…क्या कह रही हूं मैं?“
”हां बोलो न चाची।“ मैं भी नीचे से उत्साहित होकर चाची का साथ देते हुए बोला, ”सुन रहा हूं।“
”ये सब क्या हो रहा है, मैं पागल क्यों हो रही हूं।“ बुरी तरह से मेरी छाती पर नाखुन रगड़ती हुई बोली चाची, ”जलती से बुझा दो ने ये आग…।“ कहकर चाची पुनः नीचे आ गई और मैंने प्यार की कमान संभाल ली। फिर चाची बेहद कामुक आवाज में बोली, ”ओए विरेन…क्या कर रहा है। जल्दी से बोल न अपने पहलवान को, मुझे चित्त करे, मैं चित्त होने के लिए मरी जा रही हूं। तू थोड़ा और जोर दिखा, मैं बस चित्त होने ही वाली हूं। ओह विरेन….स..हू..हाय…।”
”ओह चाची।” मैं दीवानों की तरह ऊपर से जोश दिखाये जा रहा था। कभी चाची के गोरे मांसल पिंडों को मसल देता, तो कभी चाची के पिछली गलियारी में हाथ फेर देता।
फिर एकाएक चाची मुझसे ऐसे कसकर चिपक गई, जैसे उनकी जान निकल रही हो शरीर से…

 

”ओह…अब रूक जाओ विरेन।“ वह तेज-तेज सांसे लेते हुए थकी आवाज में बोली, ”मेरे प्यार का ‘कोटा’ पूरा हो गया। तुम्हारा पहलवान जीत गया और मैं हार गई। तुमने आज मुझे चित्त करके मुझे अपना दीवाना बना दिया है विरेन। मजा आ गया तुम्हारे साथ। तुम्हारा पहलवान वाकई मैं एक सच्चा और तगड़ा पहलवान है।” कहकर चाची ने मेरे पहलवान को पुचकार दिया, फिर बोली, ”ऐसा लग रहा है आज मैं सही मायने में औरत बनी हूं।“
उसके बाद हम दोनों एक-दूसरे के ऐसे गले लग गये, जैसे कई जन्मों के बिछडे़ प्रेमी आज मिल रहे हों।सुख की पूरी दास्तां, जो मैंने आप सभी
तो दोस्तों ये थी मेरे पहले स्त्री- के साथ शेयर की।
कहानी लेखक की कल्पना मात्र पर आधारित है व इस कहानी का किसी भी मृत या जीवित व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। अगर ऐसा होता है तो यह केवल संयोग मात्र हो सकता है।

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